Friday 26 August 2011

’शैतान’ के सीने पर सत्याग्रह


’शैतान’ के  सीने  पर सत्याग्रह
अरुण सिंह
देश निर्णायक मोड़ पर खड़ा है। महानुभाव अन्ना का आन्दोलन अपने पूरे शबाब पर है। गाँधी और जेपी के बाद जो आन्दोलन अन्ना ने छेड़ा है, उसमें पूरा देश बड़ी तन्मयता के साथ शामिल है। देश में भ्रष्टाचार के अलावा बेशक तमाम समस्याएं है लेकिन इसे प्राथमिकता में प्रथम स्थान में रखना होगा। इसलिए अन्ना ने अपने आन्दोलन में सबसे पहले भ्रष्टाचार को शामिल किया है। भ्रष्टाचार का शैतान पूरे देश को खाये जा रहा है। जो कोई भी इसकी राह में आया उसे ’इसका सबक’ मिला। बेहद छोटे से स्तर से लेकर शीर्ष तक भ्रष्टाचार की गंगोत्री हमारी रगांे में शामिल होती जा रही है जो भारत को लगातार कमजोर कर रही है। निकम्मों की फौज ने भ्रष्टाचार के हथियार से देश का ऐसा कबाड़ा किया कि बाहर बताते हुए भी शर्म आने लगी है। वैश्विक स्तर पर हमारी साख पर जबरदस्त धक्का लगा है। अन्ना तो बड़ी मछलियों को फँसाने के लिए लगे हैं। इन मछलियों के नीचे तो ना जाने कितनी ऐसी मछलियां तैर रही हंै जो इनकी जूठन पर भी अरबों का खेला कर लेती हैं। और इसका असर हमारी गुणवत्ता और समाज पर परोक्ष और अपरोक्ष दोनों रूप से पड़ रहा है। और शिफ़त यह कि जो इसे संचालित कर रहे है, वे लगातार मजबूत भी होते जा रहे हैं। जिन्हें इन पर नकेल कसना है वे भी इनके धोखे में फँस चुके है। एक तरफ 85 प्रतिशत जनता रोजाना 20 रुपये से भी कम पर अपना जीवन जीने को मजबूर है। तो दूसरी ओर वे है जो उनका हक एय्यासियोें में खपा रहे हैं। हमारी जिम्मेदार राजनीतिक सत्ता इन सबसे बेखबर और निर्मम भाव से खसोटने लगी हुई है। इनपर पर लगाम लगनी चाहिये। अन्ना की मुहिम का यही केन्द्रीय विन्दु और ऐसी चिन्ता है जो देश की करोड़ों आबादी का प्रतिनिधित्व करती है। और जिन्हें यह मुगालता है कि जनता ने उन्हें चुनकर भेजा है, तो उनके दरवाजे पर आज वहीं जनता रघुपति राघव राजाराम का भजन गाकर उन्हें अपने सत्याग्रह से सबक सिखाने में लग गयी है।
आजादी के पैंसठ सालों में इस देश पर अधिकाँश शासन कांग्रेसियों ने किया तो जाहिर है कि देश में जो कुछ भी अच्छा-बुरा हुआ, और हो रहा है, उसकी जिम्मेदारी भी उसी की ही है। लेकिन वह अपनी जिम्मेदारियों को मानने और गलतियों को सुधारने की बजाय अन्ना जैसे  समाजसेवियों के प्रति साजिश का दुष्चक्र रचने लगती है। यह अन्ना टीम प्रबन्धन की ही विशेषता थी कि अब तक वे कांग्रेस की गन्दी साजिशों से बच पा रहे हैं। आखिर बाबा   रामदेव कहाँ बच पाये! कांग्रेस कहती है अगर तुम मेरे मुँह की कालिख दिखाओगे तो मैं तुम्हारा भी मुँह काला कर दूंगी। इसी तर्ज पर उसने बाबा रामदेव के उस आंदोलन को कुचला जो निश्चय ही सकारात्मक सोच के साथ था। कमजोर बाबा औरतवेष में तो भाग लिये पर अन्ना का आत्मबल और प्रबंधन बाबा से ही नहीं, वरन केन्द्र की कांग्रेस सरकार से भी बेहतर साबित हुआ तभी तो वे शैतान के सीने पर सत्याग्रह का आन्दोलन चला पा रहे हैं और केन्द्र को झुकने पर मजबूर कर पाये।
अन्ना का आंदोलन आज देश का आन्दोलन बन गया है। उम्मीदों के अन्ना पूरे भारतीय परिदृश्य में ही नहीं, वरन सम्पूर्ण विश्व में रोल माॅडल के रूप में अपने बढ़ते हुए आकार के साथ उभर रहे हैं। इतिहास उन्हें किस दर्जे में रखता है यह तो समय तय करेगा, पर वर्तमान के असली महानायक तो अन्ना ही हैं जिनके पीछे पूरा देश मशाल लिये भ्रष्टाचारियों को दौड़ाने में लग गया है। सरकार के घडि़याली आँसू भले इस बात पर बहते रहे हों कि उसे अन्ना की सेहत की चिन्ता है पर वह यह संदेश जनता तक नहीं पहुंचा पायी कि उसे वाकई देश और अन्ना के सेहत की चिन्ता है। दुर्भाग्य तो यह है कि अबसे कुछ महीनों पहले तक देश जिसे भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखने लगा था उसे उससे इतनी निराशा मिली कि शायद ही कभी वह भुला पाये। केन्द्र की पूरी शैतानियों मंे राहुल गांधी जिस साक्षी भाव से निःशब्द खड़े रहे वह बहुत सारे सवाल उठाती है। अगर पार्टी पर नेहरू परिवार का दबदबा है तो पिछले दिनों जो कुछ भी हुआ वह कैसे संभव हो सका। और अगर उसका दबदबा नहीं है तो फिर हमारे सपनों के वे राजकुमार कैसे हो सकते है। और अगर आग के धधकने का इंतजार करके, उसमें अब पानी डालने का काम करें तो यह बात भी संदेह ही पैदा करती है।
अन्ना का जीवन आज निश्चित तौर पर दाँव पर है और भ्रष्टाचार की इस लड़ाई में वे सरकार के साथ द्वंद्व के बीच में जरूर फँसे हैं पर उन्होंने तो अपना काम कर ही दिया। आईकन आॅफ इंडिया के रूप में अन्ना की ताजी भूमिका ने यह देश को हौसला जरूर दिया कि 10 गुणा 10 वाली कोठरी में रहने वाला कोई अन्ना देश के किसी छोर पर है जिसे देश की चिन्ता है और जो इतना प्रबल और दृढ़ है कि वह शैतान के सीने पर मुक्का मार सकता है तथा वह समूचे देश को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित कर सकता है।
आइये! हम जरा विपक्ष की बात करें। राजनैतिक अस्थिरता ने हमारे विपक्ष के भी आत्मबल को भी इतना कमजोर और लचर कर दिया है कि वह जिनके लिये चुनकर गयी है उनके लिये भी कुछ नहीं कर पाई। आखिर इस देश को अन्ना की जरूरत क्यों पड़ी। इसका सीधा जवाब अगर कोई है तो सिर्फ अन्ना है। जिनके मंच पर किसी भी राजनीतिज्ञ की जुर्रत नहीं हुई कि पहुंच जाये।
यह ताजा महाभारत अभी कितने दिन चलेगा कहना मुश्किल है फिर भी अन्ना ने दिल जीत लिया है। उनकी भूख में हमारी भूख शामिल है। उनकी इच्छा मंे हमारी इच्छा शामिल। और उनके आन्दोलन में हम शामिल हैं। यह देश की आवाज है। यह जनता की आवाज है।